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श्रीरामचरित मानस में तमसा नदी .....

  • लेखक की तस्वीर: Siddharth Kumar
    Siddharth Kumar
  • 17 नव॰ 2023
  • 3 मिनट पठन


तमसा के तट पर राम लक्ष्मण और सीता- अयोध्याकाण्ड


जब राम ने देखा कि प्रजाजन रथ के पीछे दौड़ते ही आ रहे हैं तो उन्होंने रथ को रुकवाया और उन्हें सम्बोधित करते हुये बोले, प्रिय अयोध्यावासियों! ज्ञात है कि आप लोगों का मेरे प्रति अटूट और निश्छल प्रेम है और इसीलिये आप लोग मुझे बार-बार अयोध्या लौट चलने का आग्रह कर रहे हो। यद्यपि आपके इस प्रेम को टालना मेरे लिये अत्यन्त कठिन है, किन्तु मैं आप लोगों से आग्रह करता हूँ कि आप लोग मेरी विवशता को समझने का प्रयास करें। क्या आप लोग चाहेंगे कि मैं पिता की आज्ञा भंग करके पाप का भागी बनूँ? मैं जानता हूँ कि आप लोग मुझसे वास्तविक स्नेह रखते हैं और ऐसा कदापि नहीं चाहेंगे। अतः आप लोगों के लिये यही उचित है कि मुझे प्रेमपूर्वक वन जाने के लिये विदा करें और भरत को राजा स्वीकार करके उनके निर्देशों का पालन करें।


और भी अनेकों प्रकार से नगरवासियों को समझा-बुझा कर राम ने सुमन्त से पुनः रथ को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया। कुछ क्षणों के लिये राम के कथन का प्रभाव प्रजाजनों पर पड़ा किन्तु रथ के चलते ही वे फिर से रोते-बिलखते रथ के पीछे चलने लगे। वे राम-लक्ष्मण के प्रेम की डोर में इतना अधिक बँधे थे कि चाहकर भी राम के द्वारा दिये गये उपदेशों और निर्देशों को क्रियान्वित नहीं कर पा रहे थे और विवश होकर बरबस रथ के पीछे चले जा रहे थे। उनकी बुद्धि उन्हें रोक रही थी, किन्तु हृदय उन्हें बलात् रथ के साथ घसीटे लिये जा रहा था। उनकी भावनाओं के आगे उनका विवेक कुछ भी काम नहीं कर पा रहा था। अपनी बातों का उन पर कुछ भी प्रभाव न पड़ते देख कर राम ने सुमन्त से रथ को और तेज चलाने की आज्ञा दी और रथ की गति तेज हो गई। किन्तु भावाभिभूत प्रजाजनों की भीड़ फिर भी रथ के पीछे दौड़ी ही जा रही थी


तमसा नदी के तट पर पहुँचते पहुँचते रथ के अश्व भी क्लांत हो चुके थे तथा उन्हें विश्राम आवश्यकता थी। मन्त्री सुमन्त ने रथ वहीं रोक दिया। राम, सीता और लक्ष्मण तीनों रथ से उतर आये। वे तमसा के तट पर खड़े होकर उसकी लहरों का आनन्द लेने लगे। इतने में ही रोते बिलखते वे सहस्त्रों अयोध्यावासी भी वहाँ आ पहुँचे जो रथ की गति के साथ न चल पाने के कारण पीछे रह गये थे। उन्होंने चारों ओर से राम, लक्ष्मण तथा सीता को घेर लिया और अनेकों प्रकार के भावुकतापूर्ण तर्क देकर उनसे वापस अयोध्या चलने का अनुरोध करने लगे। रामचन्द्र ने उन्हें अनेकों प्रकार से धैर्य बँधाया। उनके कुछ शान्त होने पर रामचन्द्र ने प्रजाजनों से प्रेमपूर्वक आग्रह किया कि वे वापस लौट जावें। राम तथा प्रजाजनों के मध्य संवाद अबाध गति से चलता रहा और रात्रि हो गई। भूख-प्यास तथा लम्बी यात्रा की थकान से आक्रान्त अयोध्यावासी वहीं वन के वृक्षों के कन्द-मूल-फल खाकर भूमि पर सो गये।


जब ब्राह्म-मुहूर्त में रामचन्द्र की निद्रा टूटी तो वे उन निद्रामग्न नगरवासियों की ओर देखकर लक्ष्मण से बोले, भैया! मुझसे इन प्रजाजनों का यह त्यागपूर्ण कष्ट देखा नहीं जा रहा है इसलिए अब यही उचित है कि हम लोग चुपचाप यहाँ से निकल पड़ें। अतः हे लक्ष्मण! तुम शीघ्र जाकर तत्काल रथ तैयार करवा लो। किन्तु ध्यान रखना कि किसी प्रकार की आहट न हो वरना ये जाग कर फिर हमारे पीछे पीछे आने लगेंगे।


राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने सुमन्त से आग्रह करके रथ को थोड़ी दूर पर एक निर्जन स्थान में खड़ा करवा दिया। पुरवासियों को आभास तक नहीं मिला कि कब वे रथ में सवार होकर तपोवन की ओर निकल गए।


पुरवासियों की निद्रा भंग होने पर वे सब उन्हें ढूँढने लगे और रथ की लीक के पीछे-पीछे बहुत दूर तक गये। आगे जाकर मार्ग कँकरीला-पथरीला हो गया था इसलिए रथ के लीक के चिह्न दिखाई देना बन्द हो गया। अनेकों प्रयत्न करने पर भी जब वे रथ के मार्ग का अनुसरण न कर सके तो निराश होकर वे विलाप करते हुये लौट पड़े।




तमसा नदी जिसके तट पर बैठ कर प्रभु श्रीराम मे वनगमन के समय प्रथम रात्री विश्राम किया था ।

जिस नदी ने प्रभु श्री राम को माता जैसा सुख नदिया था ॥


धार्मिक ग्रंथ रामायण में तमसा नदी का जिक्र होने के नाते इसकी महत्ता यहां के सनतनियों लिए मां गंगा से कम नहीं है

तमसा नदी (Tamsa River), जिसे टोंस नदी (Tons River) भी कहा जाता है, भारत के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की एक उपनदी है। यह मध्य प्रदेश के मैहर जिले में कैमूर पर्वतमाला में स्थित तमसा कुण्ड नामक जलाशय से उत्पन्न होती है


तमसा नदी गंगा नदी की एक सहायक नदी है जो उत्तर प्रदेश के कई जिलों-अयोध्या, अम्बेडकर नगर, आज़मगढ़, मऊ और बलिया से होकर बहती है,


Report By. SIDDHARTH TIWARI



 
 
 

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